बागियों को क्यों जेडीयू से बाहर नहीं निकालते हैं सीएम नीतीश कुमार?

जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने यह तय कर लिया है कि पार्टी लाइन के खिलाफ जाने वाले उनकी पार्टी के नेता पवन वर्मा को पार्टी से नही निकालेंगे. लेकिन साथ में ये भी तय है कि पार्टी में इनकी कोई हैसियत भी नहीं रहेगी. नीतीश कुमार ने साफ कहा है कि जिसको जहां जाना हो जाए, इसका साफ मतलब है कि वो उन नेताओं को रोकने नहीं जा रहे हैं, जिनको पार्टी की लाइन पसंद नही आ रही हैं. पार्टी किसी को शहीद का दर्जा नहीं देना चाहती हैं.


जेडीयू का इतिहास रहा है कि वो दल के नीतियों का विरोध करने वालों को जल्दी पार्टी से नहीं निकालती है लेकिन ऐसी स्थिति जरूर कर देती है, जिसमें पार्टी में रहना न रहना बराबर हो जाता है. दिल से निकाल देती है. हाल में ऐसे कई उदाहरण देखे जा सकते हैं. दिल्ली चुनाव में ऐसे नेताओं को पार्टी के स्टार प्रचारकों शामिल न करके पार्टी यह पहले ही संदेश दे चुकी है.


जेडीयू के दो नेता पवन वर्मा और प्रशांत किशोर ने पार्टी लाइन के खिलाफ कई बार बयानबाजी की है. पहले नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर और अब दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ गठबंधन करने को लेकर बयानबाजी की गई.


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बगावत से जूझ रही जेडीयू


पवन वर्मा दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन से इतने आहत हुए कि उन्होंने नीतीश कुमार को पत्र लिख दिया और इस गठबंधन पर सवाल खडे किए. पत्र ईमेल से भेजा गया लेकिन नीतीश कुमार ईमेल पढ़ते उससे पहले पत्र मीडिया में लीक हो चुका था. जेडीयू के नेता और राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी लगातार पार्टी लाइन के खिलाफ बयान दे रहे हैं. एनआरसी को लेकर प्रशांत किशोर के ट्वीट के बाद वो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिले और इस्तीफे की पेशकश भी की थी.